चातुर्मास के अंतर्गत श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव का आयोजन
नाथद्वारा@राजसमन्द टाइम्स। पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठ,धर्मनगरी नाथद्वारा के फ़ौज मोहल्ले में समस्त फ़ुल माली समाज द्वारा समाज की हवेली में पुष्कर से पधारे संत धीरज राम महाराज के सानिध्य में भव्य चतुर्मास का आयोजन चल रहा है।
मीडिया प्रभारी संजय गोयल ने जानकारी देकर बताया कि चातुर्मास के अंतर्गत भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर संत धीरज राम महाराज ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि जब-जब भी धर्म की हानि और अधर्म का बोलबाला बढता है तब भगवान किसी न किसी रूप में प्रकट होते हैं और भगवान “ विप्र धेनु सुर संत हित , लीन्ह मनुज अवतार “ भगवान का प्राकट्य ब्राह्मण रक्षा, गाय की रक्षा, संतों की रक्षा और अपने भक्तों की रक्षा के हेतु ही होता है।
कृष्णा जन्मोत्सव से पूर्व संत श्री ने अजामिल का प्रसंग सुनाते हुए , कि अजामिल के अंदर इतने गुण है जितने तो हमारे अंदर ही नहीं है, लेकिन ग़लत संगति के कारण उसका सारा जीवन पापी के रूप में लोग दर्शन करने लगे। अजामिल के अंदर , स्वयं भगवान के पार्षद यम के दूतों को अजामिल के गुणों का वर्णन करते हुए बताते कि वह शीलवान् था , सारे व्रत एवं उपवास करता था , हमारे जैसे नहीं बल्कि पूरे विधान के साथ, उसकी भाषा बड़ी ही मिठी थी सबको अच्छा लगता था। जब वो बोलता था, इन्द्रियों को अपने वश में कर चुका था , कभी झूठ नहीं बोलता था , मंत्रों को जानता था , पवित्र ब्राह्मण था,गुरु की सेवा करता था , अग्नि की सेवा करता था , मतलब यज्ञ, हवन आदि करता था , अतिथि की सेवा में तत्पर रहता था , वृद्धों की सेवा करता था और इतना सब कुछ करने के बाद मैं भी बिलकुल भी अहंकार नहीं था।पार्षदों ने कहा इसने अनं समय में नारायण का नाम लिया है, वस्तु शक्ति ज्ञान की अपेक्षा नहीं रखती है। जैसे बिजली के तार में करंट है किसी को ज्ञान है और किसी को नहीं है पर जो भी उसको छू लेगा उसे करंट तो लगेगा ही लगेगा।
इसके बाद संत धीरजराम ने गजेंद्र मोक्ष का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि “ सुख के सब साथी दुख के ना कोई , मेरे राम मेरे राम “ गजेंद्र का उद्धार करने के लिए भगवान ने हरि का अवतार धारण करा, भगवान का नाम हरि इसलिए पड़ा है जो किसी के पापों का हरण करें जो किसी के दुख का हरण करे इसलिए वह हरि है।
एक बात ध्यान रखना यह कथा हाथी की नहीं है , हम सबकी है जो हम सम्पूर्ण जीवन संसार के रिश्तों के बंधन में बँधे रहते हैं और कब बुढ़ापा आ जाता है और कब वह हमारे को घेर लेता है हमें पता ही नहीं चलता है और अंत समय में हम जाग्रत होते हैं फिर कोई अर्थ नहीं रहता , ग्राह (अज़गर) मतलब काल हमें घेर लेता है और फिर हम भगवान को पुकारते हैं फिर भी भगवान बड़े दयालू और कृपालु है इस जीव को बचाने के लिए आ ही जाते हैं इसलिए भगवान का एक नाम है करुणा वरुणालय।
एक भक्त कहता है भगवान् आपके अनेक नाम होंगे उन नामों से मुझे कोई मतलब नहीं बस आपका सबसे अच्छा नाम है। करुणानिधान, आप किसी भी जीव पर अतिशीघ्र करुणा कर देते हो फिर उसके कितने भी पाप हो आप उसको नहीं देखते हो । कथा के अंत में संत श्री ने कृष्ण प्राकट्य का दिव्य प्रसंग सुनाया ।
कथा में सुर,ताल हेतु संगीत के साजोसामान सहित लाडनूं से आए भजन गायक रोहित भोजक और नाथद्वारा फूल माली समाज के संगीत के क्षेत्र में उभरते हुए सितारे पिंटू उर्फ जयंत माली ने “ नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की “ एवं कृष्ण भगवान के जन्म की बधाई गाते हुए सभी भक्तों को झूमने पर मजबूर कर दिया।