कुशल वीरांगना रानी दुर्गावती का हुआ इतिहास जीवंत
उदयपुर@राजसमंद टाइम्स। रविवार को शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर एवं सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में मासिक नाट्य संध्या ‘रंगशाला’ में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत महानाट्य ‘कुशल वीरांगना रानी दुर्गावती’ का मंचन किया गया।
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर के निदेशक फुरकान खान ने बताया कि माह के प्रथम रविवार को आयोजित होने वाले मासिक नाट्य संध्या रंगशाला के तहत नई दिल्ली से सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र द्वारा ‘कुशल वीरांगना रानी दुर्गावती’ महानाट्य प्रस्तुत किया गया। यह महानाट्य महानायिका की 500वीं जयंती के अवसर पर एक श्रद्धांजलि थी। इस महानाट्य की संकल्पना एवं निर्देशन डॉ. विनोद नारायण इंदूरकर, अध्यक्ष सीसीआरटी, निर्माण प्रमुख राजीव कुमार, निदेशक सीसीआरटी, लेखक जुलेशा सिद्धार्थ, सीसीआरटी अध्येता है। इस महानाट्य के जीवंत अभिनय ने दर्शकों ने बहुत सराहा। अंत में सभी कलाकारों का सम्मान किया गया।
इस अवसर पर सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र नई दिल्ली के चेयरमेन डॉ. विनोद नारायण इंदूरकर, राजीव कुमार, निदेशक सीसीआरटी, जुलेशा सिद्धार्थ एवं अन्य सीसीआरटी पदाधिकारी सहित पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे। प्रारंभ में कार्यक्रम अधिकारी पवन अमरावत, अधीक्षण अभियंता सीएल सालवी, कार्यक्रम प्रभारी हेमंत मेहता ने शॉल एवं पुष्पगुच्छ द्वारा स्वागत किया। आभार सीसीआरटी नई दिल्ली के उपनिदेशक राहुल कुमार ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन दुर्गेश चांदवानी ने किया।
महानाट्य की कहानी
यह कहानी महान वीरांगना रानी दुर्गावती की है। रानी दुर्गावती ने बड़े साहस और कुशल नेतृत्व से मुगल साम्राज्य की ताकत का सामना किया। हाथों में दो तलवार लेकर रानी दुर्गावती निकल पड़ी थी रणभूमि में। उन्होंने अपने समय की कई अन्य वीरांगनाओं की तरह दुश्मन के हाथों में पड़ने की बजाय मौत को गले लगाना स्वीकार किया। इसीलिए उनका नाम इतिहास की शानदार शहादतों में शुमार हो गया।