खमनोर। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को समर्पित एकमात्र सरकारी स्मारक विगत डेढ़ दशक से उपेक्षित होकर वर्तमान तक असुरक्षित है।
विगत दिनों सोशल मीडिया पर स्मारक स्थित प्रताप प्रतिमा से छेड़छाड़ का एक अपमान जनक वीडियो सब तरफ वायरल हो रहा है और जिम्मेदार सब मौन दर्शक बने हुए है।वायरल वीडियो में तीन युवक प्रतिमा पर चढ़ कर मुकुट पर चढ़ बैठे है व 10 सेकेंड का वीडियो बनाया गया है। घटना को लेकर सब तरफ़ आक्रोश फैल रहा है। इतिहासकार डॉ चंद्रशेखर शर्मा ने इसे लेकर प्रशासन से कठोर कार्यवाही की मांग की है। खमनोर के स्थानीय मंडलों ने नायब तहसीलदार को ज्ञापन देकर इस पर कार्यवाही की मांग की है।महाराणा प्रताप स्मारक अभियान के चंद्रवीर सिंह नमाना ने जिला कलेक्टर के जरिए मुख्यमंत्री को पत्र लिख कठोर कार्यवाही की मांग की है। प्रथम दृष्टया यह वीडियो राजसमंद से बाहर बाड़मेर के युवाओं द्वारा बनाया गया था जिसका सर्व समाज से माफी मांगते हुए भी एक वीडियो वायरल किया गया है।
ऐसे में यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि राजनैतिक व प्रशासनिक संरक्षण में चल रहे महाराणा प्रताप स्मृति संस्थान की लापरवाही व निजी संग्रहालय से मिलीभगत के परिणाम स्वरूप यह घटना हुई है। इस पर कोई ध्यान देना या तो चाहते नहीं या जान कर अनजान बने बैठे है..!
जानकारी हेतु बता दे कि महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक की नींव 18 जून 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल , पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मुख्यमंत्री भेरूसिंह शेखावत आदि विशिष्ट लोगों द्वारा भरी गई थी। 21 जून 2009 को महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक लोकार्पण व प्रतिमा का अनावरण तत्कालीन केंद्रीय मंत्री डॉ सीपी जोशी ,पर्यटन मंत्री बीना काक सहित विशिष्ट लोगों द्वारा किया गया था।वर्तमान में यह अधूरा स्मारक राष्ट्रीय स्मारक तो घोषित नहीं हो सका व एक साधारण सा उपेक्षित स्मारक बन कर रह गया । पर्यटन विभाग द्वारा इसका संचालन एमओयू महाराणा प्रताप स्मृति संस्थान के साथ किया गया था।
1993 से जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में चल रहे महाराणा प्रताप स्मृति संस्थान हल्दीघाटी राजसमंद की निष्पक्ष जांच की जाए तो हल्दीघाटी के विकास एवं उसकी आड़ में हुए सारे भ्रष्टाचार का परत दर परत खेल उजागर हो सकेगा ।
हल्दीघाटी पर्यटन समिति के अनुसार 2009 से स्मारक के संचालन को लेकर कोई विशेष प्रयास अभी तक नहीं हो पाए है। ओपन थियेटर आज तक आरम्भ नहीं हो सका, यहाँ बनने वाला संग्रहालय कागजों में दफन हो गया, चेतक नाला सौंदर्यीकरण अधूरा ही पड़ा है व आसपास प्राकृतिक नाले भर कर पहाड़ियों को नष्ट कर दिया गया है। वर्तमान में यह एक अवसर है कि प्रशासन स्थानीय राजनीति से ऊपर उठ कर महाराणा प्रताप स्मृति संस्थान की जांच कर के सभी संरक्षकों को धरातल की जानकारी दे कर (राज्यपाल, सांसद, विधायक, प्रधान आदि) हल्दीघाटी का वास्तविक पारदर्शिता से विकास कर सके।