लोग डिप्रेशन की दवाइयां खा लेंगे पर एक-दूसरे से जलना और धोखा करना नहीं छोड़ेंगे-मुनि अतुल

राजसमन्द @RajsamandTimes। युग प्रधान आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासन श्री मुनि रविंद्र कुमार एवं मुनि अतुल कुमार महाश्रमण विहार चारभुजा विहार कर रहे है।  रात्रि कालीन प्रवचन माला में मुनि अतुल कुमार ने कहा ईर्ष्या अनंत बुराइयों की जड़ और गुणों का क्षय है। ज्यादातर लोग दूसरों के दुख से सुखी और दूसरों के सुख से दुखी रहते हैं। जिंदगी में कुछ छोड़ना चाहते हो तो दूसरों से जलना छोड़ो। लोग डिप्रेशन की दवाइयां तो खा लेंगे एक दूसरे से जलना और धोखा करना नहीं छोड़ेंगे।स्वयं से असंतुष्ट रहने वाला व्यक्ति हर समय शिकायत की किताब को लेकर घूमता है। ईर्ष्या करने वाला मनुष्य भीतर से कमज़ोर होता है।वह दीन होता है, असहाय होता है। ईर्ष्या से भरे व्यक्ति सबको तुच्छ मानते हैं, चाहे वह अच्छा या बुरा हो। पड़ोसी को सुखी देखकर दुखी नहीं होना चाहिए।ईर्ष्या वह आंतरिक अग्नि है जो अंदर ही अंदर दूसरे की उन्नति या बढ़ती देख कर हमें भस्मीभूत किया करती है। दूसरे की भलाई या सुख देखकर मन में जो एक प्रकार की पीड़ा का प्रादुर्भाव होता है, उसे ईर्ष्या कहते हैं। ईर्ष्या एक मानसिक कैंसर है।ईर्ष्या में दुख का विषय होता है-उसने उन्नति क्यों कि? समाज में उच्च स्थिति एवं दूसरों के सम्मुख अपनी नाक ऊंची रखने के लिए ईर्ष्या का जन्म होता है। ईर्ष्या में क्रोध का भाव किसी न किसी प्रकार मिश्रित रहता है। ईर्ष्या के लिए भी कहा जाता है कि “अमुक व्यक्ति ईर्ष्या से जल रहा है”। धनी व्यक्ति दूसरे को नीचा देखना चाहता है। असंपन्न ईर्ष्या वाला केवल अपने को नीचा समझे जाने से बचने के लिए आकुल रहता है। ईर्ष्या अभिमान को जन्म देगी, अहंकार की अभिवृद्धि करेगी और कुढन का ताना-बाना बुनेगी। अहंकार से आदत होकर हम दूसरे की भलाई ना देख सकेंगे ।अभिमान में मनुष्य को अपनी कमजोरियां नहीं दिखती। अभिमान का कारण अपने विषय में बहुत ऊंची मान्यता धारण कर लेना है। ईर्ष्या उसीकी सहगामिनी है। ईर्ष्या द्वारा हम मन ही मन दूसरे की उन्नति देखकर मानसिक दुख का अनुभव किया करते हैं। अमुक व्यक्ति ऊंचा उठता जा रहा है, हम यों ही पड़े हैं, उन्नति नहीं कर पा रहे हैं। फिर वह भी क्यों इस प्रकार उन्नति करे। उसका कुछ बुरा होना चाहिए। उसे कोई दुख, रोग, शोक, कठिनाई अवश्य पढ़नी चाहिए। उसकी बुराई हमें करनी चाहिए। यह करने से उसे अमुक प्रकार से चोट लगेगी। इस प्रकार की विचारधारा से ईर्ष्या निरंतर मन को क्षति पहुंचाती है। मुनि रविंद्र कुमार ने मंगल पाठ सुनाया। प्रवचन में काफी अच्छी संख्या में लोग उपस्थित रहे।