संसद के शून्यकाल में उठाए नाथद्वारा स्थित शिव मूर्ति के व्यवसायीकरण पर सवाल
राजसमंद। सांसद महिमा कुमारी मेवाड़ ने लोकसभा में पहली बार में ही धार्मिक पाखंड और धर्म के व्यवसायीकरण पर प्रश्नों की बौछार कर दी।
लोकसभा में बजट सत्र के दौरान राजस्थान में सबसे बड़ी जीत के लिए राजसमंद संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का आभार और कार्य के प्रति अपने संकल्प को दोहराते हुए कहा कि मुझे गर्व है कि मैं उस प्रदेश से आती हूं जो भक्ति, शक्ति और वीरता के लिए जाना जाता है, मैं उस क्षेत्र से आती हूं जो मीरा बाई, पन्नाधाय, रानी पद्मिनी और हाड़ी रानी के लिए जाना और पहचाना जाता है। मैं उस वंश की बहु हूं जिसको पूरी दुनियां वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के नाम से जानती हैं।
सांसद में कहा कि उनके पुरखों ने कभी भी जाति, वर्ग या स्त्री – पुरुष में कभी कोई भेदभाव नहीं किया। इस देश के लिए, इस मातृ भूमि के लिए सभी वर्गों ने समान रूप से बलिदान दिया है। लेकिन मुझे दुख है कि सदन में विपक्ष द्वारा जाति, धर्म और वर्ग के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिश की जा रही है। मेवाड़ का इतिहास 1400 सालों से भी पुराना इतिहास रहा है जहां 36 ही कोमों को साथ लेकर, एक माला में बांधकर आगे बढ़ने की परंपरा रही है।
सांसद ने आसान के माध्यम से धर्म के व्यवसायीकरण पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि धार्मिक स्थल, धार्मिक स्थल ही रहने चाहिए। धार्मिक स्थलों को मनोरंजन या व्यवसाय का केंद्र नहीं बनाना चाहिए।
सांसद महिमा कुमारी मेवाड़ ने अपने संसदीय क्षेत्र के नाथद्वारा क्षेत्र में स्थित विशाल शिव मूर्ति के व्यवसायीकरण के साथ मनोरंजन केंद्र के रूप में विकसित किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि शिव मूर्ति में लिफ्ट लगाना, जूते चप्पल पहनकर जाने से धार्मिक भावनाएं आहत होती है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकार से अनुरोध है की ऐसे स्थलों को सिर्फ धार्मिक स्थल के रूप में ही विकसित किया जाए।
राजस्थान विधानसभा में विधायक मेवाड़ ने उठाया शिव मूर्ति परिसर में मनोरंजन का मुद्दा
बता दे कि नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ ने भी राजस्थान विधानसभा में यह मुुद्दा उठाते हुए कहा कि पर्यटन की दृष्टि से कुछ वर्षों से धार्मिक स्थलों पर अनुचित तरीके से मनोरंजन और व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत में अधिकतर लोगों की किसी न किसी धर्म में आस्था है।सदियों से लोग अपने धर्म अनुसार तीर्थ यात्रा करते आ रहे हैं, उन्हें लुभाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यात्रियों के लिए धार्मिक स्थलों की सुविधा पर ध्यान देना आवश्यक है। लेकिन धार्मिक स्थलों की पहचान और रखरखाव से परे पर्यटन के नाम से मनोरंजन और संबंधित व्यवसाय तेजी से अपनाएं जा रहे हैं। इसे न तो धर्म स्थल का रखाव होता है, मनोरंजन भी अधूरा रह जाता है और आस्था फीकी पड़ जाती है। नाथद्वारा स्थित एक मूर्ति परिसर में मनोरंजन और मंदिर का भद्दा मिलाप देखा जा रहा है, मूर्ति इतनी विशाल है कि आप इसके अंदर जा सकते है और अंदर जाकर उसके कंधों तक चढ़ सकते हैं। मूर्ति का ऐसा उपयोग प्रयोग न ही धार्मिक, न ही नास्तिक, बल्कि अधर्म का प्रतीक ही कहा जा सकता है। सरकार से यह आग्रह और प्रश्न है कि क्या धर्म के नाम पर चल रही ऐसी गतिविधियों को रोका जाएगा? क्या स्थानीय लोगों की भावना और धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखा जाएगा? आखिर धर्म की रक्षा आस्था से की जाती है, दिखावे से नहीं।