राजसमन्द@RajsamandTimes। आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासन श्री मुनि रविंद्र कुमार एवं मुनि अतुल कुमार के सानिध्य में मंगलवार को नाथद्वारा विहार से पूर्व धोइंदा में प्रवचन हुए। मुनि अतुल कुमार ने कहा कि माला जपना ठीक है पर मन की माला बेहतर है।
परमात्मा हमारी माला की गिनती को नहीं देखते बल्कि हमारी भावना को देखते हैं। इसलिए आप बिना माला के भी जप कर सकते हैं। इस काम के लिए आप जितना समय निकाल सकें वही अच्छा है। हमें कर्मों का फल अवश्य ही भुगतना पड़ता है।यदि मनुष्य का कर्म ही काला है तो रुद्राक्ष की माला भी क्या करेगी। रुद्राक्ष की माला भी तब असर दिखाती है, जब उसके कर्म अच्छे होते हैं। जब हम भगवान को समय देते हैं तो भगवान भी हमें समय देते हैं। अच्छे धन और अच्छे तन से परमात्मा नहीं मिलते। परमात्मा से मिलना है तो मन विशुद्ध रखना होगा। उस मन को भक्ति में लगाओ। मनुष्य ही अच्छे और बुरे कर्म करता है, पशु नहीं। इसलिए कर्म करने से पहले एक बार अवश्य सोचें, क्या मैं यह सही कर रहा हूं। अगर कर्म करने से पहले अच्छे से सोच लें तो शायद हम बुरा कर्म करने से बच सकते हैं। अगर आपने अपने आपको बचा लिया तो सजा से भी बचा लिया। आपने बुरा कर्म कर लिया तो एक न एक दिन भगवान अवश्य सजा देगा। इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में तो निश्चित ही कर्मों का फल भोगना पड़ता है। कर्म और भक्ति दोनों का एक ही उद्देश्य है-चित्त की शुद्धि। कर्म बंधन का कारण होता है जैसा कर्म करेंगे, वैसा फल बनेगा।और उस फल को भोगने के लिए पुनः संसार में आना पड़ेगा,यह चक्र निरंतर चलता रहेगा। भक्ति अपने आपमें सर्वश्रेष्ठ है। पूरी निष्ठा और समर्पण भाव से किया गया निष्काम कर्म ही भक्ति है। मुनि रविंद्र कुमार ने मंगल पाठ सुनाया। विहार सेवा में भेरूलाल लोढ़ा, बापू लाल लोढ़ा, ममता कच्छारा, निर्मल छाजेड़, प्रियांक तलेसरा, कमलेश धाकड़, पुष्पेन्द्र छीपा, सीपी व्यास सहित काफी अच्छी संख्या में लोग उपस्थित रहे।