नाथद्वारा। (चन्दन मिश्रा) सुदामा के सखा परम पिता प्रभु श्रीनाथजी की नगरी में संचालित निजी स्कूलों पर ये कहावत सटीक बैठ रही है। शहर के कई नामी निजी स्कूल में बच्चों की संख्या और औसत फीस का आंकलन करेंगे तो आप चौंक जाएंगे। बारह सौ से दो हजार बच्चों का औसत 25000 के हिसाब से आंकड़ा करोड़ों पार। ये तो सिर्फ फीस का हिसाब है। किताबों में मनमानी, ड्रेस, शूज और साल भर की एक्टिविटी को मिलाकर आप अनुमान लगा लें कि मध्यमवर्गीय अभिभावकों की जेब पर कितना बड़ा डाका डाला जा रहा है। शिक्षा का इतना खतरनाक व्यवसायीकरण बच्चों के भविष्य बनाने में कितना कारगर साबित हो रहा है, ये तो पता नहीं, मगर बच्चों के माता-पिता की जिंदगी की कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन स्कूल संचालकों की जेब में जरूर जा रहा है। तरह तरह के स्वांग रचने वाले ये निजी विद्यालय अभिभावकों को रिझा कर मनमानी करने से नही चूक रहे नगर में ऐसे कई विद्यालय है जो सालाना सिर्फ लाखो लगा कर बच्चो के नाम पर करोड़ो कमा रहे है जब कि प्रावधान के अनुसार अगर कोई संचालक निजी विद्यालय चलाता है तो उसे नो प्रॉफिट नो लोस पर बतौर सेवा भाव से कार्य करना होता है, ऐसे में चल रही इन शिक्षा की दुकानों पर प्रशासन भी नकेल नही कस पा रहा मानो ये प्रतीत हो रहा है कि इस संदर्भ में प्रशासन धृतराष्ट्र बना बैठा है। रही सही कसर इन शिक्षा के नाम बढ़ते माफियाओं को पनपाने में सरस्वती उपासक होने का स्वांग रचने वाले पत्रकारों ने विज्ञापनों की आड़ में पूरी कर दी है, जिन्हें सरकारी विद्यालयों के हालात पर कोई खबर बनाने की प्रेरणा नहीं मिलती बस इन निजी स्कूलों से प्राप्त वार्षिक चंदे से अपने बच्चों का भविष्य सुधारने बनाने की कवायद कर संपूर्ण शिक्षा जगत में नाथद्वारा की छवि बिगाड़ रखी है।
क्या कभी किसी सरकारी विद्यालय को प्रचारित करती खबर पढ़ी है साहब… विज्ञापन के बल पर सबको गुमराह करने वालो की सोच आज दलालों की मौज बन गई है।