दीपों का त्योहार

 

” दीपों का  त्योहार “

अबके सावन बरसा झूम के, भादों बरसा लूम-झूम ।
धरा ने श्रृंगार नवल, धानी धानी पाया है ।।
स्वर्णिम रश्मियों सी आभा, पुलकित जीवन आशा ।
गौरय्या का गान सुन मन, अति भरमाया है ।।
भूमि पुत्र हुआ मगन, खेत खेत हो चमन ।
विश्व का कल्याण भाव, उस मन में समाया है।।
कभी कोई ना निराश हो, पूरी सबकी आस हो।
दीपों का त्योहार फिर से, इसीलिए आया है।।

(2)

ममता समता नैतिकता, और मंगलता भरे हों मन ।
सद्भावों का प्याला, दूर मन का अंधियारा हो ।।
जात – पांत ऊँच-नीच, ना हो अब समाज में।
“सर्वे भवन्तु सुखिनः”, का ही उजियारा हो ।।
महके हर सवेरा और, स्वर्णिम हो सबकी शाम ।
समरसता का दीप जले, ऐसा भाई-चारा हो ।।
दीवारें ना हों भेद-भाव, और अपमान की।
सर्व हित संकल्पों का ही, ध्येय हमारा हो ।।

(3)

गृह – गृह पथ – पथ, मंगल गान की है धुन।
दीपों की लहराती लौ ने, मारग ये सजाया है।।
दुष्टता और दम्भ के प्रतीक उस रावण को।
मर्यादा और सौम्यता के राम ने हराया है।।
दीप रश्मियों से घिरे, स्वास्तिक यूँ पुकारते।
घर – घर आजा लक्ष्मी, सब ने बुलाया है।।
निष्प्राण मन जगाने, होठों पे मुस्कान सजाने।
दीपों का त्योहार फिर से, इसीलिए आया है।।

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 आप सभी देशवासियों को दीपों के त्योहार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

 

 

 

रचना प्रस्तुति – श्री नरेन्द्र कुमार शर्मा