तिलकायतश्री की आज्ञा से श्रीनाथजी मंदिर में ‘घन की सेवा’ के साथ हुआ अन्नकूट महोत्सव की तैयारियों का शुभारम्भ


नाथद्वारा (राजसमन्द टाइम्स)। पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठ प्रभु श्री नाथ जी की हवेली में श्रीजी प्रभु के अन्नकूट महोत्सव की सेवा प्रणाली के तहत गो.ति. श्री 108 राकेश महाराज श्री की आज्ञा एवं गो.चि.105 विशाल बावा के निर्देशन में रविवार को ‘घन की सेवा’ प्रारंभ हुई।

महोत्सव की तैयारियों का शुभारंभ करते हुए रविवार प्रातः कालीन वेला में श्रीजी प्रभु के मंगला दर्शन के समय ‘अपने अपने टोल कहत ब्रज वासिया’ एवं ‘लिए विप्र बुलाय यज्ञ आरम्भ कीनो, सुरपति पूजा मेट राज गोवर्धन दिनो’ के भाव से ब्राह्मण समाज के सेवक गण,अनकूट के मुखिया प्रवीण साचिहर,प्रचारक रमेश साचिहर ,पंड्या परेश नागर,श्रीजी के मुखिया इन्द्रवदन, प्रदीप सांचीहर आदि ने घन की सेवा प्रारंभ कर अन्नकूट महोत्सव की विशेष तैयारियों का आगाज किया।

यह सर्व विदित है कि अन्नकूट की सेवा का हमेशा आरंभ घन की सेवा से ही होता है, जिसमें लकड़ी के बड़े-बड़े भारी घन (हथोड़ा) से मूंग की दाल एवं उड़द की दाल के चून को घन से पीट कर गुंथा जाता है इसीलिए इसे ‘घन की सेवा’ कहा जाता है। सेवा के पश्चात सभी सेवक गणों ने भाव से श्रीनाथजी मंदिर की भजन गाते हुए परिक्रमा की। परिक्रमा में सेवा वाले सेवक,हेमंत,दिनेश,नरेन्द्र,कुलदीप,मानस,नटवर नागर,ऋषि साचिहर,निलेश शर्मा,राजा, लालजी,अरूण,रवि,योगेश, पपन,कृष्णा,गिरिराज,जय, मनोजआदि सहित अन्य सेवकगण उपस्थित थे।

पौराणिक कथा के अनुसार प्रभु श्री कृष्ण द्वारा अपने बाल्यकाल में ही बृजवासियों की इंद्र के कोप से रक्षा करते हुए गोवर्धन पर्वत को अपने बाएं हाथ की कनिष्का उंगली पर धारण करके देवराज का मान भंग किया था। इंद्र द्वारा क्षमा याचना कर कामधेनु और ऐरावत भेंट की गई। सप्ताह भर तक डटे रहे इंद्र के मान भंग पश्चात प्रभु को बृजवासियों ने छप्पन भोग लगाया था। यह परंपरा आज भी जारी है।

इसी परंपरा निर्वहन में गोवर्धन जतीपुरा से नाथद्वारा विग्रह स्वरूप में पधार कर विराजमान होने वाले प्रभु के विश्व प्रसिद्ध श्रीनाथजी मंदिर में दीपावली पर्व के द्वितीय दिवस पर गोवर्धन पूजन एवं अन्नकूट की परंपरागत झांकी व लूट के दर्शनों का विशेष महत्व माना गया है। अन्नकूट महोत्सव के दौरान प्रभु के समक्ष नाना प्रकार की प्रसाद सामग्री युक्त चावल का एक बड़ा सा ढ़ेर लगाया जाता है । प्रभु के महाप्रसाद को लूटने आदिवासी समाज का हुजूम उमड़ता है। श्रद्धालुओं का ऐसा मानना है कि आदिवासी समाज द्वारा प्रसाद की लूट से याचक बन कर जब वैष्णव जन प्रसाद पाते है वह वर्ष भर आमजन के अन्नपूर्णा भंडार भरे रखता है।