महर्षि चरक के सिद्धांत आज भी हैं प्रासंगिक

चरक जयंती  9 अगस्त पर  विशेष

आलेख -डॉ शोभालाल औदीच्य, वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्साधिकारी, उदयपुर

महर्षि चरक 

चरक जयंती इस वर्ष 9 अगस्त 2024 को मनाई जा रही है। यह श्रावण शुक्ल नाग पंचमी के दिन मनाई जाती है। लगभग 200 वर्ष पूर्व ईसा पूर्व चिकित्सा ग्रंथ लुप्त हो गए थे और इस समय मानवता को अत्यंत संकट का सामना करना पड़ा था। इस दौर में जब समाज अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगा, भगवान शेषनाग स्वयं धरती पर आए और कश्मीर के पुंछ के पास कपिष्ठल नामक गाँव में जन्म लिया। इस कारण से महर्षि चरक के जन्मदिन को हम श्रावण शुक्ल पंचमी नाग पंचमी के रूप में मनाते हैं।

महर्षि चरक ने वेदों और उपनिषदों का अध्ययन करने के उपरांत आयुर्वेद का अध्ययन प्रारंभ किया। उन्होंने महर्षि पुनर्वसु आत्रेय और आचार्य अग्निवेश द्वारा प्रणीत अग्निवेश तंत्र को खोजा और इसके छिन्न-भिन्न अंशों को सहेजकर चरक संहिता का लेखन प्रारंभ किया।

चरक संहिता और चिकित्सा सिद्धांत

महर्षि चरक ने चरक संहिता के माध्यम से चिकित्सा सिद्धांतों की स्थापना की। उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। चरक संहिता में वर्णित चिकित्सा सिद्धांतों का आधार त्रिदोष सिद्धांत है। यह सिद्धांत वात, पित्त, और कफ के संतुलन पर आधारित है। उन्होंने औषधियों का चयन और उनका प्रयोग कर चिकित्सा पद्धतियों को विकसित किया।

चरक संहिता के महत्वपूर्ण सिद्धांत

महर्षि चरक ने चरक संहिता में दिनचर्या, ऋतुचर्या, और विभिन्न रोगों की चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए। उन्होंने पंचकर्म चिकित्सा पद्धति की भी स्थापना की, जो रोगों को मूल से समाप्त करने वाली है। इसके अलावा, उन्होंने विभिन्न औषधियों, शरीर रचना, और निदान स्थान के सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन किया।

आधुनिक चिकित्सा में चरक सिद्धांतों की प्रासंगिकता

महर्षि चरक के सिद्धांत आज भी चिकित्सा क्षेत्र में प्रासंगिक हैं। उदाहरण के लिए, हाल ही में कोविड-19 महामारी के दौरान, आयुर्वेदिक चिकित्सा संस्थाओं ने चरक के त्रिदोष सिद्धांत के आधार पर चिकित्सा की और सफलता प्राप्त की। इसी प्रकार, अन्य संक्रामक रोगों जैसे स्वाइन फ्लू, टाइफाइड, मलेरिया, चिकनगुनिया, जीका वायरस, और डेंगू की चिकित्सा में भी चरक के सिद्धांत प्रभावी सिद्ध हुए हैं।

चरक संहिता के विशेष उपचार

महर्षि चरक ने चरक संहिता में च्यवनप्राश जैसे रसायनों का उल्लेख किया है, जो श्वास और कफ रोगों में विशेष रूप से लाभकारी हैं। च्यवनप्राश के सेवन से शरीर में ऊर्जा और उत्साह बना रहता है और यह फेफड़ों की कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाता है।

महर्षि चरक के अन्य महत्वपूर्ण योगदान

महर्षि चरक ने कुष्ठ रोग, त्वक रोग, मानस रोग, और प्रमेह जैसी व्याधियों की चिकित्सा के भी सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। उन्होंने औषधीय पौधों के महत्व को भी प्रतिपादित किया और त्रिफला, आंवला, और हल्दी जैसी औषधियों का उल्लेख किया।

चरक शपथ

आजकल देशभर के मेडिकल और आयुर्वेद कॉलेजों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को चरक शपथ की प्रतिज्ञा करवाई जाती है। हिमाचल प्रदेश के चरेख-डांडा गाँव में महर्षि चरक की तपस्या स्थली मानी जाती है, जहां चरक-यात्रा का आयोजन होता है।

निष्कर्ष

महर्षि चरक के चिकित्सा सिद्धांत और त्रिदोषवाद का सिद्धांत ही सार्वत्रिक, सर्वकालिक सत्य सिद्धांत है। यह सिद्धांत वैज्ञानिक हैं और स्वीकार करने योग्य हैं। ऐसे महापुरुष जिन्होंने हजारों वर्ष पूर्व वैज्ञानिक चिकित्सा सिद्धांतों की प्रस्तुति देकर मानवता को रोगों से मुक्त होने का सूत्र दिया, उनका स्मरण करना और उनके जन्मदिन को मनाना हमारा कर्तव्य है।

आइए, इस वर्ष 9 अगस्त 2024 को हम सभी मिलकर महर्षि चरक का जन्मदिन धूमधाम से मनाएं और इस समाज को पूर्ण स्वस्थ और रोग मुक्त करने का संकल्प लें।