राजसमन्द@RajsamandTimes। भारतीय नववर्ष के अवसर पर नववर्ष समारोह समिति के तत्त्वावधान में युवतरंग संस्कृत नाट्य दल जयपुर की प्रस्तुति भगवदज्जुकीयम् प्रहसन का मंचन श्री गोवर्धन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय नाथद्वारा फौज मोहल्ला परिसर में स्थित ऑडिटोरियम में किया गया | इस नाटक में हास्य के साथ साथ गुरु शिष्य संबंध तथा योगशास्त्र का महत्त्व बताया गया| सातवीं शताब्दी में कविवर बोधायन द्वारा रचा गया यह संस्कृत प्रहसन आज भी प्रासंगिक है |
इस प्रहसन में एक परिव्राजक अपने शिष्य शांडिल्य को अनेक प्रकार से अध्ययन करने के लिए प्रेरित करते हैं। शांडिल्य कहता है कि मैं तो सुख से बिना परिश्रम भोजन प्राप्ति की कामना से ही संन्यासी बना हूँ, मुझे ज्ञानार्जन की कोई इच्छा नहीं है। शांडिल्य अध्ययन नहीं करने के पक्ष में कई हास्यास्पद तर्क प्रस्तुत करता है। परिव्राजक उसे योग एवं अध्ययन का महत्व बताते हैं। वे दोनों चर्चा करते हुए एक उद्यान में प्रवेश करते हैं, जहाँ एक अज्जुका गणिका अपनी दो सखियों के साथ उपस्थित है। अज्जुका के गीत से मोहित होकर शांडिल्य अज्जुका से स्नेह करने लगता है। तभी एक यमदूत सांप के रूप में आकर अज्जुका के प्राणों को हर लेता है परिव्राजक के मना करने पर भी शांडिल्य जोर-जोर से विलाप करता है और परिव्राजक से अज्जुका को पुनः जीवित करने का निवेदन करता है। परिव्राजक उसे “इसकी आयु समाप्त हो गई है।” ऐसा कहकर मना कर देता है। दुःखी शांडिल्य परिव्राजक को अपशब्द भी कहता है। तब परिव्राजक शांडिल्य को योग का महत्व समझाने के लिए योगबल से अपनी आत्मा को अज्जुका के मृत शरीर में प्रवेश करा देता है। अज्जुका जीवित होकर शांडिल्य को अध्ययन करने के लिए कहती है। आश्चर्यचकित शांडिल्य पुनः परिव्राजक के समीप जाता है एवं उनके शरीर को प्राणरहित पाकर विलाप करता है। उधर क्रमशः अज्जुका की माता एवं प्रेमी रामिलक प्रवेश करते हैं। अज्जुका के शरीर में परिव्राजक की आत्मा उन्हें डाँट लगाती है। सखी के साथ आए हुए तन्त्रवैद्य को भी अज्जुका फटकार कर भगा देती है। तभी यमपुरुष आकर कहता है कि उसने गलती से अज्जुका के प्राण ले लिए थे, परन्तु अज्जुका के शरीर में परिव्राजक की आत्मा को पाकर वह अज्जुका की आत्मा को परिव्राजक के शरीर में छोड़ देता है। तब परिव्राजक उठकर अज्जुका की तरह व्यवहार करते हैं। सभी आश्चर्यचकित होते हैं इसी दौरान सुन्दरगुलिक नामक सर्प वैद्य भी अज्जुका का उपचार करने में असमर्थ होता है। अन्त में यमपुरुष पुनः आकर परिव्राजक से गणिका का शरीर छोड़ने की प्रार्थना करता है। और परिव्राजक और अज्जुका के प्राणों को पुनः अपने-अपने शरीर में प्रवेश करा देता है। भरत वाक्य के साथ प्रहसन पूरा होता है।
इस नाटक का निर्देशन दीपक भारद्वाज ने किया तथा सहायक निर्देशन संदीप शर्मा का रहा | इस अवसर पर मतदाता जागरूकता हेतु एक लघु नाटिका यमलोक में मतदान भी प्रस्तुत की गई । मुख्य पात्रों में अर्जुन देव, यशस्वी ,प्रियंका, चैतन्य योगेश पलक तथा अंजलि थे|