नाथद्वारा@RajsamandTimes। पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठ प्रभु श्रीनाथजी की हवेली में शनिवार को 4 जून रविवार को स्नान यात्रा महोत्सव पर होने वाले श्रीजी प्रभु के ज्येष्ठाभिषेक स्नान के लिए जल यात्रा के भाव से गो. चि.105 विशाल बावा द्वारा प्रभु के स्नान के लिए श्रीजी प्रभु की हवेली में स्थित भीतर की बावड़ी से पवित्र जल भर कर लाया गया। विशाल बावा के साथ श्रीजी प्रभु एवं लाडले लाल प्रभु के मुखिया एवं भीतरिया तथा मंदिर सेवा वाले भी प्रभु के स्नान के लिए जल भरकर लाए । तिलकायत श्री एवं विशाल बावा ने श्रीजी प्रभु के संध्या दर्शन पश्चात प्रभु के स्नान के लिए लाए जल का सुगंधित द्रव्य पदार्थों जिनमें विशेष रूप से गुलाब जल, चंदन, बरास, केसर,सुगंधित फूलों आदि से जल का अधिवासन किया।
इस अवसर पर विशाल बावा ने श्रीजी प्रभु के स्नान यात्रा के भाव का महत्व बताते हुए अपने वचनामृत में कहा कि ” शास्त्रोक्त रूप से जिस दिन ज्येष्ठ नक्षत्र हो उस दिन प्रभु को सूर्योदय से पूर्व प्रातः शीतल एवं सुगंधित जल से वेद मंत्रों से प्रभु को स्नान कराया जाता है, शास्त्रों में प्रभु को शीतल जल से स्नान कराने का विधान प्राप्त होता है परंतु पुष्टिमार्ग में श्रीजी प्रभु या किसी भी स्वरूप को नित्य शीतल जल से स्नान नहीं कराया जाता है क्योंकि प्रभु के सुखार्थ पूरे वर्ष में प्रभु को उष्ण जल से स्नान कराया जाता है। पुष्टीमार्ग में स्नान यात्रा के दिन प्रभु को शीतल जल के द्वारा स्नान कराने से वेदोक्त आज्ञा का पालन भी हो जाता है क्योंकि हमारे प्रभु इस संपूर्ण पुष्टि सृष्टि के प्रणेता एवं राजा हैं इसलिए राज्याभिषेक के भाव से भी स्नान कराने का भाव है, दूसरे भाव के अर्थ में पुष्टीमार्ग भक्ति स्नेह प्रधान होने के कारण श्री कृष्ण की सेवा ब्रजाधीश की भावना से होती है व आज के विशेष दिन की सेवा नंदालय की भावना से भी की जाती है । ब्रज लीला की भावना अनुसार आज के दिन श्री नंदराय जी अपने पुत्र श्री कृष्ण का राज्याभिषेक नंदालय में करते हैं जिससे सभी ब्रजभक्तों को आनंद होता है, प्रभु के दर्शन के लिए सभी ब्रज भक्त पधारते हैं इस दिन भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों के साथ श्री यमुनाजी में जल क्रीड़ा भी करते हैं इसी भाव से आज के दिन पुष्टि में अपने-अपने प्रभु को स्नान कराते हैं। इसीलिए सख्य भाव से सखियां श्रीजी प्रभु के ऊपर जल का छिड़काव करती है उसी रूप में श्रीजी प्रभु के दर्शन के समय स्नान का क्रम भी प्रभु के छिड़काव के रूप में होता है । वेदोक्त रूप में पुरुष सूक्त के मंत्रों में इन्हीं श्री कृष्ण के विराट स्वरूप का वर्णन है वेद मंत्रों के उच्चारण सहित प्रभु को इस दिन स्नान कराया जाता है यह प्रभु के माहात्म्य में ज्ञान का प्रकार है। जिस दिन स्नान यात्रा हो उसके पूर्व दिन को जल यात्रा कहते हैं और स्नान यात्रा के दिन श्री प्रभु सवा लाख आम का भोग अरोगते हैं वह इसीलिए कि सभी भक्तों को प्रसाद के रूप में प्रभु की कृपा प्राप्त हो सके।”