नाथद्वारा@राजसमन्द टाइम्स। सुख का जो धाम हैं वह राम हैं। राम आदि, अनंत, परम ब्रह्म और परम तत्व हैं। शीतल संत मुरारी बापू ने नाथद्वारा में विश्व की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा विश्वास स्वरूपम के विश्वार्पण के साथ शुरू हुई रामकथा के छठे दिन भगवान श्रीराम के जन्म के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए राम की महिमा बताई। भ्राता भरत के बारे में उन्होंने कहा कि भरत प्रेम के शाश्वत विग्रह है। प्रेम किसी का भी शोषण नहीं करता है। बापू ने कहा, जिसके नाम से शत्रु बुद्धि या शत्रुता का नाश हो, वह शत्रुघ्न है। समस्त लक्षण का जो भण्डार हैं, शेष नारायण के शेषावतार हैं और राम जिनके साध्य हैं, वे लक्ष्मण हैं। ये चारों महान सूत्र हैं।
बापू ने कहा कि राम मंत्र जपने की एक विधि होती है। सिर्फ जपना ही पर्याप्त नहीं होता, मन की सात्विकता भी जरूरी है। किसी से द्वेष भाव ना रखें। उदारता रखें, अपनी क्षमता के अनुसार दूसरों को आधार दें और जितना हो सके उतना सहयोग दें। राम अपने जीवन में इन सूत्रों को चरितार्थ करते हैं। प्रभु श्रीराम ने किसी को मारा नहीं, बल्कि तारा है।
बापू ने कहा कि भगवान शंकर बहुत उदार हैं, सबके नाथ हैं, उनका भजन करना चाहिए। शंकर के हाथ में कुछ नहीं है, लेकिन उनके अंग की भभूति विभूति है, श्री और वैभव से सम्पन्न है।
त्रिभुवन के गुरु हैं भगवान शंकर
‘‘वन्दे बोधमयं……’’ मंत्र की व्याख्या को विस्तारित करते हुए बापू ने कहा कि शंकर त्रिभुवन गुरु हैं। भगवान शंकर बहुत उदार हैं, सबके नाथ हैं, उनका भजन करना चाहिए। शंकर के हाथ में कुछ नहीं है, लेकिन उनके अंग की भभूति विभूति है, श्री और वैभव से सम्पन्न है। राम चरित मानस में शंकर केवल 8 बार आए हैं और यही विश्वास स्वरूपम के अष्ठमूर्ति का अभिषेक है। उन्होंने बताया कि अन्तर्मन में कब कचरा आ जाये, यह कहा नहीं जा सकता है। गुरु निष्ठा में आस्था बहुत जरूरी है। प्रत्येक बुद्ध पुरुष को पता होता है कि मेरा आश्रित कैसा है।
बापू ने कहा कि यदि हमें कुछ समझ नहीं आए तो उस समय चुप रहना बेहतर होता है। सद् विचार हमेशा लेना चाहिए, सत्य हमेशा ले लेना चाहिए, फिर वह चाहे कहीं से भी मिले। सत्य को स्वीकार ना कर सकें तो कोई बात नहीं, परन्तु सुनने का साहस हमेशा रखना चाहिए। माता, पिता, आचार्य, अतिथि को सदैव प्रणाम करना चाहिए। क्रोध से सदैव बचना चाहिए। उन्होंने ग्रंथों की महत्ता पर कहा कि जब तक जरूरी हो, हमें पढ़ते रहना चाहिए। ग्रंथों की महत्ता तब तक है जब तक हम मूल नहीं ढूंढ़ लेते।
सत्य आयेगा तो तप आयेगा
आदमी सरल, सीधा व शुद्ध होता है, लेकिन संगत असर दिखाती है। भूल व गलती सभी से होती है, लेकिन भूल या गलती हो जाने पर अहिल्या की तरह चित्त को स्थिर करें तो अयोध्या में जाकर प्रायश्चित करने की जरूरत नहीं है, बल्कि अयोध्या के राम आपके पास चल कर आते हैं।
बापू ने बताए गुरु के 12 रूप – शंकर रूपी गुरु के 12 रूपों का उल्लेख करते हुए मुरारी बापू ने कहा कि धातु रूपी गुरु गहराई में जाकर करूणामय आंखों से उसके अन्तःकरण को खोजकर उसे ज्ञान देता है। चन्दन गुरु ऐसा बुद्ध पुरुष होता है जिसका सामीप्य प्राप्त होने मात्र से ही ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। हमें निकट बैठकर नीति-अनीति, शाश्वत-अशाश्वत का अनुभव करा दे, वह विचार गुरू है। गुरु विचार कराना बंद नहीं कराता है। विचार सत्य की गहराई से ही निकलते हैं। हमारे सिर पर हाथ रख दे और संवेदनाएं प्रकट हो जाएं, ऐसा गुरु पारस गुरु होता है। भीतरी चेतना को जाग्रत करने वाला कश्यप गुरु होता है। गुरु तेज तो करे, लेकिन क्रोध ना करे, शीतलता से ज्ञान दे ऐसा चन्द्र गुरु होता है। गूढ़ से गूढ़ रहस्यों का दर्शन भी अपने अनुभव रूपी दर्पण से कराता हो, ऐसा शुद्ध व बुद्ध पुरुष दर्पण गुरु होता हैं। कल्पना एवं श्रद्धा रूपी पक्षी की छाया जिस पर पड़ जाए वह राजा बन जाता है। ऐसा गुरु जिसका साया हमें शिवत्व का बोध करा दे वह छाया विधि गुरु है। गुरु की आवाज सुनकर ही हमारी चमक बढ़़ जाती है।
मदन के पास भौतिक कमाई के साथ दैवीय कमाई भी
बापू ने कहा कि मदन पालीवाल के पास भौतिक कमाई के साथ ही दैवीय कमाई भी है। महादेव के आशीर्वाद से बुधवार को यहां 1.70 लाख लोगों ने प्रभु प्रसाद पाया है। समय-समय पर रामकथा के माध्यम से अध्यात्म जगाना कम बात नहीं है। इनके पास भौतिक कमाई के साथ ही दैवीय कमाई भी है।
ये रहे उपस्थित – मानस विश्वास स्वरूपम राम कथा के दौरान गुरुवार को आयोजक संत कृपा सनातन संस्थान के ट्रस्टी मदन पालीवाल, मंत्रराज पालीवाल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, राज्य के शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला, रवीन्द्र जोशी, रूपेश व्यास, विकास पुरोहित, विष्णु दत्त, प्रकाश पुरोहित, जिला कलेक्टर, जिला पुलिस अधीक्षक सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे।
हंसराज रघुवंशी ने बाँधा समा
मानस विश्वास स्वरूपम के तहत आयोजित सांस्कृतिक संध्या में गुरुवार को हंसराज रघुवंशी ने जबरदस्त समा बांधा। पांडाल पुरा खचाखच भरा हुआ था। भीड़ का आलम ये था कि सैकड़ो लोग बाहर रोड पर भी जमा रहे। तीन किलोमीटर तक वाहनों का जमावाड़ा रहा ओर रह रह कर जाम लगता रहा ओर आयोजको कि ओर से स्वयंसेवक जाम खुलवाने कि मशक्कत करते रहे। हरिवंश ने अपने चिर परिचित अंदाज़ मे गीतों से समा बांधते हुए श्रोताओ को झूमने पर मजबूर कर दिया। श्रोताओ की फरमाएश पर भी हंसराज ने भजन गाकर माहौल को शिवमय कर दिया। रघुवंशी ने ऐसा डमरू बजाया भोले नाथ ने से कार्यक्रम कि शुरुआत कि। इसके बाद लागी लगन शंकरा, राधे राधे बोल, ये जीवन तेरा लकड़ी का पुतला, मेरा भोला है भंडारी, महादेवा, मैं शिव का हूँ शिव मेरे हैं, चले थे शंकर कथा सुनाने, पार्वती बोली शंकर से सुनिए भोलेनाथ जी जैसे गीतों पर दर्शकों को जगह नहीं मिलने के बावजूद नाचने पर मज़बूर कर दिया। भीड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि कार्यक्रम समाप्ति के बाद भी एक घंटे तक रास्तो पर जाम लगा रहा और आयोजकों की ओर से नियुक्त स्वयंसेवको को खासी मशक्कत करनी पड़ी।